पिछले 7 दिनों से जारी जंग के बीच इजरायल ईरान के तमाम परमाणु अड्डों पर हमला कर रहा है. यह भी माना जा रहा है कि अमेरिका भी जल्द तेहरान के दक्षिण में एक पहाड़ी इलाके में छिपे हुए फोर्डो न्यूक्लियर एनरिचमेंट प्लांट (परमाणु संवर्धन संयंत्र)  को तबाह करने के लिए अपने बंकर-फोड़ बम GBU-57 का इस्तेमाल कर सकता है. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर किसी हमले से वैसी ही परमाणु तबाही देखने को मिल सकती है जो आज से 39 साल पहले सोवियत रूस के चेर्नोबिल में देखने को मिली थी.

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बीबीसी की रिपोर्ट में साइंस कॉरेस्पोंडेंट विक्टोरिया गिल लिखती है कि भले इजरायल ने अपने हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को टारगेट किया है, लेकिन उन्होंने ईरान के उन न्यूक्लियर प्लांट को निशाना बनाया है जहां यूरेनियम को एनरिच किया जाता है, यानी शुद्ध किया जाता है. एक्सपर्ट्स ने बीबीसी न्यूज को बताया है कि उन साइटों को नुकसान होने से चेरनोबिल या फुकुशिमा जैसी आपदाओं की तरह “परमाणु घटना” का खतरा पैदा नहीं होगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि जिन न्यूक्लियर प्लांट में सिर्फ यूरेनियम एनरिचमेंट होता है वहां कोई परमाणु प्रतिक्रिया (न्यूक्लियर रिएक्शन) नहीं हो रही है.

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परमाणु ऊर्जा स्टेशन (न्यूक्लियर पावर प्लांट) के रिएक्टर में, यूरेनियम के परमाणुओं को एक नियंत्रित विखंडन प्रतिक्रिया में तोड़ा जाता है. इससे जो गर्मी पैदा होती है, उससे बिजली होती है. इसके साथ में अपशिष्ट उत्पाद (वेस्ट प्रोडक्ट) भी लाती है जो यूरेनियम ईंधन की तुलना में अधिक रेडियोएक्टिव होते हैं. दूसरी ओर, एनरिचमेंट प्लांट में केवल फ्यूल (यूरेनियम) का उत्पादन होता है. यहां कोई न्यूक्लियर रिएक्शन नहीं होता है.

बांगोर यूनिवर्सिटी के न्यूक्लियर मैटेरियल वैज्ञानिक साइमन मिडलबर्ग बताते हैं कि यदि किसी एनरिचमेंट प्लांट पर बमबारी की जाती है तो “शुद्ध किया जा रहा यूरेनियम उस प्लांट से बाहर निकल जाएगा- संभवतः पर्यावरण में. लेकिन कोई न्यूक्लियर रिएक्शन होने की संभावना नहीं है, और इसलिए खतरे स्थानीय रहेंगे और सुविधा के आसपास एक छोटे से इलाके के बाहर कोई रेडियोलॉजिकल जोखिम पैदा नहीं होगा.”

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