इटली में यूरोप का सबसे सक्रिय और खतरनाक माना जाने वाला माउंट एटना ज्वालामुखी में भयानक विस्फोट हुआ है। ज्वालामुखी के फटने से दूर तक लावा, राख और धुआं पहुंच रहा है। इस महाविस्फोट के बाद पर्यटकों को जान बचाकर मौके से भागना पड़ा। देखते ही देखते ज्वालामुखी से निकली राख, धुआं और गर्म लावा मीलों दूर तक फैल गया। कई पर्यटकों ने इसका वीडियो और फोटो भी बनाया है।
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भयानक विस्फोट से धरती में हुआ कंपन्न
द सन की रिपोर्ट के अनुसार माउंट एटना ज्वालामुखी का विस्फोट इतना भयानक था कि धरती कांप उठी। स्थानीय अधिकारियों के अनुसार, ज्वालामुखी के दक्षिण-पूर्वी क्रेटर का एक हिस्सा संभवतः धंस गया, जिससे यह तेज़ विस्फोट हुआ। इसके साथ ही भयंकर कंपन्न और लगातार हो रहे विस्फोटों ने भय का माहौल पैदा कर दिया।
तेज विस्फोट के साथ फव्वारे की तरह फूटा लावा
ज्वालामुखी में विस्फोट के बाद उससे निकलने वाला लावा फव्वारे की तरह फूट पड़ा। इसकी गर्म चट्टानें और जहरीली गैसें क्षेत्र में दूर तक फैल गईं। इससे नजदीकी कतानिया हवाई अड्डे पर विमानों की उड़ानें स्थगित कर दी गईं। ज्वालामुखी विस्फोट से पहले एक तीव्र कंपन्न महसूस किया गया, जो रात लगभग 10 बजे शुरू हुआ और तीन घंटे बाद अपने चरम पर पहुंच गया।
“कोड रेड” से “ऑरेंज” अलर्ट तक
वॉल्केनिक ऐश एडवाइजरी सेंटर टूलूज़ (VAAC) ने पहले इस विस्फोट के लिए “कोड रेड” जारी किया, जिसे कुछ घंटों बाद “ऑरेंज अलर्ट” में बदल दिया गया। संगठन ने बताया कि राख के बादल मुख्य रूप से जल व सल्फर डाइऑक्साइड से बने हैं, जो दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बह रहे हैं। इससे आबादी की ओर बरसने का खतरा हो सकता है। गर्म लावा, राख के साथ खौलता जल और सल्फर डाइऑक्साइड की बारिश भी हो सकती है।
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शनिवार रात से ही हो रहे विस्फोट
इटली के राष्ट्रीय भूभौतिकी और ज्वालामुखी संस्थान (INGV) ने पुष्टि करते हुए कहा, “बीते शनिवार की रात से लगातार स्ट्रोम्बोलियन विस्फोट हो रहे हैं, जिनकी तीव्रता लगातार बढ़ रही है और वर्तमान में वे बेहद शक्तिशाली हैं।” साथ ही यह भी कहा गया कि “दक्षिण-पूर्वी क्रेटर से अब विस्फोट की गतिविधि लावा फव्वारे में बदल गई है और कंपन का स्तर बहुत ऊंचा है।”
पहले भी फट चुका है ज्वालामुखी
माउंट एटना का पिछला बड़ा विस्फोट मई में हुआ था, जबकि फरवरी 2024 में इस ज्वालामुखी से निकला गर्म लावा और आग ने पूरे पर्वत को जलती हुई चोटी में तब्दील कर दिया था। उस समय कई कस्बे काली ज्वालामुखीय राख की चादर से ढक गए थे।