बीजापुर। RTI कानून की अनदेखी लोकतंत्र की रीढ़ कहे जाने वाले सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 (RTI Act) की दुर्दशा बीजापुर जिले में खुलकर सामने आ गई है। आरटीआई कार्यकर्ता यदीन्द्रन नायर द्वारा जनपद पंचायत भोपालपट्टनम और उसूर के खिलाफ मांगी गई जानकारियों पर न कोई जवाब मिला, न ही कोई कार्रवाई, जिससे विभागों की पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
नायर की RTI : पारदर्शिता की मांग, लेकिन जवाब नदारद
यदीन्द्रन नायर ने जनपद पंचायतों में मनरेगा, पीएम आवास योजना, निर्माण कार्यों और ठेकेदारों से जुड़ी जानकारियाँ मांगी थीं। लेकिन नियमानुसार 30 दिन के भीतर जवाब देना अनिवार्य होने के बावजूद विभागों ने चुप्पी साध रखी है।
“मैंने महीनों तक दफ्तरों के चक्कर काटे, अधिकारी या तो अनुपस्थित मिले या टालमटोल करते रहे। एक बार तो कहा गया – ‘आप जैसे लोग ही काम में अड़ंगा डालते हैं’। ये लहजा दर्शाता है कि उन्हें आरटीआई से डर लगता है,” — यदीन्द्रन नायर
मौन व्यवस्था या मिलीभगत का तंत्र?
सूत्रों के मुताबिक दोनों पंचायतों में योजनाओं की फाइलों में “काम पूरा” दिखाया गया, जबकि जमीनी हकीकत इससे अलग है। निर्माण कार्य अधूरे, लेकिन भुगतान पूर्ण हो चुका है। इससे ठेकेदार और जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत की आशंका को बल मिलता है।
कानून की धज्जियाँ और प्रशासन की चुप्पी
RTI Act की धारा 7(1) के तहत 30 दिनों में जवाब देना अनिवार्य है, लेकिन ऐसा न करना दंडनीय अपराध है। बावजूद इसके, न तो अधिकारियों पर जुर्माना लगाया गया और न ही राज्य सूचना आयोग ने ठोस कार्रवाई की।
“अगर एक जागरूक कार्यकर्ता की भी आवाज दबाई जा रही है, तो आम ग्रामीणों को कैसे न्याय मिलेगा?” — स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता
नाम न छापने की शर्त पर कर्मचारियों का कबूलनामा
कुछ विभागीय कर्मचारियों ने गोपनीय रूप से बताया कि ऊपर से दबाव के चलते RTI का जवाब देने से बचा जा रहा है।
न्याय की लड़ाई: सड़क से लेकर आयोग तक
यदीन्द्रन नायर ने इस मुद्दे को लेकर राज्य सूचना आयोग, मानवाधिकार आयोग और न्यायालय जाने का ऐलान किया है। साथ ही उन्होंने बीजापुर में जनजागरण अभियान की भी शुरुआत की है।
“ये सिर्फ मेरी नहीं, हर उस नागरिक की लड़ाई है जो यह जानना चाहता है कि उसका पैसा कहां खर्च हो रहा है। पंचायतें जवाब नहीं देंगी तो हम सड़कों पर उतरेंगे।” — यदीन्द्रन नायर
क्या सरकार लेगी संज्ञान?
यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्रों में कानून सिर्फ किताबों तक सीमित रह गया है। अब देखना यह है कि क्या सरकार इस मामले में कार्रवाई करती है या फिर यह मुद्दा भी फाइलों की गर्द में गुम हो जाएगा।