देवभोग/गरियाबंद। छत्तीसगढ़ की गरियाबंद पुलिस ने एक बार फिर अंतर्राज्यीय वन्यजीव तस्कर पर बड़ी कार्रवाई कर विलुप्त प्रजाति के जीव सालखपरी (पैंगोलिन) की तस्करी का पर्दाफाश किया है। पुलिस ने तीन तस्करों को गिरफ्तार कर उनके कब्जे से एक जीवित सालखपरी तथा सालखपरी की छाल (सेल) बरामद की है। यह कार्रवाई थाना देवभोग पुलिस और सायबर टीम ने संयुक्त रूप से अंतर्राज्यीय चेकपोस्ट खुटगांव में की, जहां ओडिशा से अवैध रूप से वन्यजीव की तस्करी की जा रही थी।
गरियाबंद पुलिस अन्तर्राज्यीय वन्यजीव तस्कर का पर्दाफाश
इस कार्रवाई को गरियाबंद पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर नशा, हीरा, गांजा और वन्यजीवों की अवैध तस्करी पर रोकथाम के तहत चलाए जा रहे विशेष अभियान के अंतर्गत अंजाम दिया गया।
मुखबिर की सूचना से खुला बड़ा नेटवर्क
दिनांक 26 अक्टूबर 2025 को थाना देवभोग को मुखबिर से सूचना प्राप्त हुई कि दो वाहन—एक सफेद रंग की मारूती कार (क्रमांक OD 08 10 7638) और एक मोटर साइकिल HF डिलक्स (क्रमांक CG 05 C 9151) में ओडिशा से देवभोग की ओर विलुप्त प्रजाति के वन्य जीव सालखपरी (पैंगोलिन) और उसकी छाल अवैध रूप से बिक्री हेतु लाई जा रही है।
सूचना मिलते ही वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराते हुए थाना प्रभारी देवभोग के नेतृत्व में पुलिस दल और सायबर टीम को अंतर्राज्यीय चेकपोस्ट खुटगांव पर तैनात किया गया। कुछ ही समय बाद मुखबिर द्वारा बताए गए हुलिए की एक कार और मोटरसाइकिल वहां आती दिखाई दी।
चेकिंग में पकड़े गए आरोपी:
गरियाबंद पुलिस ने जब वाहनों को रोका और पूछताछ की, तो कार चालक ने अपना नाम भवतोश पात्र पिता परमेश्वर पात्र, उम्र 55 वर्ष, निवासी ग्राम अरेबेटा, थाना कलमपुर, जिला कालाहांडी (ओडिशा) बताया। कार की सहयात्री सीट पर बैठे व्यक्ति ने अपना नाम गोरे बारिक पिता मोनो बारिक, उम्र 55 वर्ष, निवासी ग्राम रेगालपाली, थाना कलमपुर, जिला कालाहांडी (ओडिशा) बताया।
वहीं मोटर साइकिल चालक का नाम कौशल नागेश पिता खगेश्वर नागेश, उम्र 35 वर्ष, निवासी ग्राम ठिरलीगुड़ा, थाना देवभोग, जिला गरियाबंद (छत्तीसगढ़) के रूप में सामने आया।

वाहन तलाशी में मिली जीवित सालखपरी और छाल
पुलिस द्वारा वाहनों की तलाशी लेने पर मारूती कार की डिक्की से एक जीवित सालखपरी (पैंगोलिन) बरामद की गई। वहीं, मोटर साइकिल HF डिलक्स से सालखपरी (पैंगोलिन) की छाल (सेल) प्राप्त हुई। यह बरामदगी गवाहों की उपस्थिति में की गई।
बरामद जीवित सालखपरी का वजन 9.000 किलोग्राम, जबकि बरामद छाल का वजन 6.13 किलोग्राम पाया गया। इन दोनों को जब्त कर पुलिस ने कब्जे में लिया और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज किया।
अंतर्राज्यीय शिकार व तस्करी का खुलासा
पूछताछ में आरोपियों ने खुलासा किया कि उन्होंने यह सालखपरी (पैंगोलिन) ओडिशा के सुनाबेड़ा वन्यजीव अभ्यारण्य से शिकार कर पकड़ा था। इसके बाद वे इसे कौशल नागेश, जो देवभोग क्षेत्र का रहने वाला है, के माध्यम से विक्री हेतु छत्तीसगढ़ के भीतर लाने की योजना बना रहे थे।
भवतोश पात्र और गोरे बारिक ने माना कि वे कई बार इस तरह की तस्करी कर चुके हैं और यह गिरोह ओडिशा–छत्तीसगढ़ सीमा पर सक्रिय अंतर्राज्यीय नेटवर्क से जुड़ा हुआ है।
कानूनी धाराएं और अपराध पंजीबद्ध
तीनों आरोपियों के विरुद्ध थाना देवभोग में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धाराओं
9, 27, 29, 31, 39(ख), 51(1)क, 52 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया।
पुलिस ने सभी आरोपियों को विधिवत गिरफ्तार कर न्यायिक प्रक्रिया के लिए अदालत में प्रस्तुत किया है।
बरामद जीवित सालखपरी को जंगल सफारी रायपुर में छोड़ा गया
गरियाबंद पुलिस द्वारा जब्त किए गए जीवित सालखपरी को विधिवत रूप से वन विभाग को सुपुर्द किया गया। वन विभाग ने चिकित्सकीय जांच के बाद उसे सुरक्षित रूप से जंगल सफारी रायपुर में छोड़ा, जहां उसकी देखरेख और सुरक्षा की जा रही है।
अधिकारियों की तत्परता और सायबर टीम की भूमिका सराहनीय
इस कार्रवाई में थाना प्रभारी देवभोग के साथ सायबर सेल की टीम की भूमिका अत्यंत सराहनीय रही। मुखबिर की सटीक सूचना, त्वरित प्रतिक्रिया और सघन चेकिंग के चलते अंतर्राज्यीय वन्यजीव तस्करों का यह नेटवर्क उजागर हो सका।
पुलिस अधीक्षक गरियाबंद ने इस कार्रवाई की प्रशंसा करते हुए कहा कि –
- “गरियाबंद पुलिस अवैध वन्यजीव व्यापार, नशा तस्करी और खनिज तस्करी जैसी गतिविधियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाए हुए है। ऐसे मामलों में किसी भी आरोपी को बख्शा नहीं जाएगा।”
क्या है सालखपरी (पैंगोलिन)?
सालखपरी या पैंगोलिन दुनिया का एकमात्र शल्कधारी स्तनधारी (स्केल्ड मैमल) है। इसकी पहचान इसके मजबूत केराटिन स्केल्स (छाल) से होती है। यह जीव रात्रिचर होता है और मुख्य रूप से चींटियां व दीमक खाता है।
पैंगोलिन को इसकी छाल के कारण अवैध रूप से तस्करी किया जाता है, क्योंकि पारंपरिक दवाओं में इसे अत्यधिक मूल्यवान माना जाता है। यही कारण है कि यह जीव IUCN की रेड लिस्ट में ‘विलुप्तप्राय’ (Endangered) श्रेणी में दर्ज है।
भारत में पैंगोलिन की स्थिति
भारत में दो प्रजातियों के पैंगोलिन पाए जाते हैं —
- भारतीय पैंगोलिन (Manis crassicaudata)
- चीनी पैंगोलिन (Manis pentadactyla)
दोनों ही वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में शामिल हैं, जिसका अर्थ है कि इनके शिकार, व्यापार या किसी भी प्रकार की तस्करी पर संपूर्ण प्रतिबंध है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पैंगोलिन तस्करी
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों के अनुसार, पिछले दशक में पैंगोलिन की तस्करी सबसे अधिक बढ़ी है। एशिया और अफ्रीका में हर वर्ष हजारों पैंगोलिनों को अवैध रूप से पकड़ा जाता है।
पैंगोलिन की छाल (स्केल्स) का उपयोग चीन और दक्षिण–पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों में पारंपरिक चिकित्सा और आभूषण बनाने में किया जाता है। वहीं, इसका मांस भी अवैध बाजारों में “डेलिकेसी” के रूप में बेचा जाता है।
गरियाबंद–ओडिशा सीमा तस्करी का हॉटस्पॉट
देवभोग क्षेत्र छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमा से लगा हुआ है। यह क्षेत्र घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों से घिरा है, जिससे तस्करों को वन्यजीवों के अवैध शिकार और परिवहन में आसानी होती है।
पिछले कुछ वर्षों में गरियाबंद पुलिस ने कई बार अवैध हीरा, गांजा और वन्यजीव तस्करी के मामलों में बड़ी सफलता हासिल की है।
यह हालिया मामला भी उसी सिलसिले की एक और कड़ी है, जिसने वन्यजीव संरक्षण के प्रति पुलिस की सजगता को फिर से साबित किया है।
जनजागरूकता और कानून का पालन ही समाधान
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्थानीय लोगों में वन्यजीवों के महत्व और उनके कानूनी संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए, तो ऐसे अपराधों पर प्रभावी रोक लगाई जा सकती है।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अनुसूची-I में शामिल जीवों का शिकार या व्यापार करने पर 7 वर्ष तक की सजा और जुर्माना का प्रावधान है।
निष्कर्ष : गरियाबंद पुलिस की तत्परता ने बचाई एक विलुप्तप्राय जान
गरियाबंद जिले की देवभोग पुलिस ने त्वरित कार्रवाई कर न केवल एक विलुप्तप्राय सालखपरी (पैंगोलिन) की जान बचाई, बल्कि अंतर्राज्यीय वन्यजीव तस्करी के एक बड़े नेटवर्क का पर्दाफाश भी किया है।
यह कार्रवाई पुलिस और वन विभाग के बीच बेहतर समन्वय का परिणाम है और यह संदेश देती है कि छत्तीसगढ़ पुलिस अवैध व्यापार और पर्यावरण अपराधों के खिलाफ पूरी तरह सतर्क है।



