गरियाबंद। डबरी निर्माण ने बदली किस्मत राज्य शासन की महत्वाकांक्षी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) ने गरियाबंद जिले के एक किसान की तकदीर बदल दी। देवभोग विकासखंड के ग्राम पंचायत डुमरबहाल के निवासी मोहन ने इस योजना के अंतर्गत अपने खेत में डबरी (छोटा तालाब) का निर्माण करवाकर न केवल सिंचाई की समस्या से निजात पाई, बल्कि मछली पालन, साग-सब्जी और धान की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर लिया।
डबरी निर्माण ने बदली किस्मत मछली पालन, साग-सब्जी और कृषि से मोहन बना आत्मनिर्भर
ग्राम पंचायत डुमरबहाल, जिसकी कुल आबादी करीब 2,500 है और क्षेत्रफल 1,220.25 एकड़ में फैला हुआ है, वहां के अधिकतर किसान जल की कमी से जूझते आ रहे थे। विशेषकर गर्मियों में पानी का संकट गहराता था, जिससे फसलों की सिंचाई और पशुओं के लिए भी जल की व्यवस्था कठिन हो जाती थी। ग्राम सभा में जब महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत डबरी निर्माण की जानकारी दी गई, तब मोहन ने इस योजना का लाभ लेने का निश्चय किया।
मोहन ने ग्राम पंचायत में डबरी निर्माण के लिए आवेदन दिया। आवेदन की स्वीकृति के बाद जिला पंचायत के सहयोग से उनके खेत में मनरेगा योजना के अंतर्गत डबरी निर्माण का कार्य पूरा हुआ। इस डबरी ने उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की शुरुआत की। अब उनके पास अपने खेतों के लिए एक स्थायी जल स्रोत उपलब्ध है, जिससे वे सालभर खेती कर पा रहे हैं।
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डबरी से सिंचाई कर मोहन ने लगभग 1.50 एकड़ भूमि में धान की खेती की, जिससे उन्हें करीब 50 हजार रुपए की आमदनी हुई। साथ ही डबरी में मछली पालन शुरू कर उन्होंने अब तक 20 हजार रुपए का लाभ कमाया है। यही नहीं, डबरी के पास की जमीन में उन्होंने साग-सब्जी, अरहर, और कोचई (अरबी) की खेती भी की, जिससे उन्हें 10 से 12 हजार रुपए की अतिरिक्त आय हुई।
मोहन का कहना है कि पहले वह केवल वर्षा आधारित खेती पर निर्भर थे, जिससे साल भर आय नहीं हो पाती थी। लेकिन डबरी निर्माण के बाद उन्हें अपने खेतों को सूखे से बचाने में मदद मिली है। आज वे आत्मनिर्भर हैं और अपने अनुभवों से गांव के अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं। वे लोगों को डबरी निर्माण के फायदे बताते हुए आवेदन देने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
मोहन ने राज्य शासन और मनरेगा योजना के प्रति आभार जताते हुए कहा कि यदि सही योजना और थोड़े प्रयास से काम किया जाए, तो ग्रामीण क्षेत्र के किसान भी आत्मनिर्भर बन सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि डबरी निर्माण से न केवल उनकी आय बढ़ी है, बल्कि जल स्रोतों में भी बढ़ोतरी हुई है, जिससे गांव की जल समस्या कुछ हद तक सुलझी है।
निष्कर्षतः, यह कहानी बताती है कि कैसे एक छोटी सी पहल – डबरी निर्माण – ने मोहन जैसे किसान की जिंदगी बदल दी। यह उदाहरण इस बात का सबूत है कि योजनाएं तभी सफल होती हैं जब लोग जागरूक होकर उनका लाभ उठाएं। मोहन की मेहनत और सोच ने यह साबित कर दिया है कि आत्मनिर्भरता की राह गांवों से होकर गुजरती है।