राज्यपाल के वनवासी दत्तक पुत्र के अस्तित्व खतरे में शासन-प्रशासन नहीं दे रहे हैं महत्त्व

राज्यपाल के वनवासी दत्तक पुत्र के अस्तित्व खतरे में शासन-प्रशासन नहीं दे रहे हैं महत्त्व

गरियाबंद। गरियाबंद जिला मुख्यालय लगभग 28 कि.मी. दूर ग्राम पंचायत कोपेकसा के आश्रित गांव सुखरीडबरी जो जंगलों के बीच में एक ऐसे भुंजिया परिवार पांच सदस्य है, इनकी भविष्य पूरी तरह खत्म होता नजर आ रहा है। माता श्रीमती अघनी बाई भुंजिया इनके चार बेटे बड़ा बेटा महेश, जेपाल, धीपॉल, शिवपाल। इनमें से बड़े बेटा महेश भुंजिया (30 वर्ष)के माता ने बताया जब महेश तीन चार साल उम्र का था, तो इन्हें अचानक इनके शरीर में झटके जैसे हुआ तब से इनकी शारीरिक स्थिति बिगड़ता गया। तब से इनकी स्थिति ऐसी ही है,।
पूछने पर महेश को रस्सी से क्यों बांधे रखे हैं तो बताया मानसिक स्थिति खराब के चलते एक बार जंगल की तरफ भाग गया था ढूंढने पर बहुत मुश्किल से मिला तब से लेकर आज तक तकरीबन 15 से 20 वर्ष हो गया इसे रस्सी से बांधकर रखें। हम इसे लेकर हर समय चिंतित रहते हैं कि इन्हें रस्सी से अलग कर दिया जाए तो कुछ अनहोनी ना करदे करके। इनका आधार कार्ड अभी तक नहीं बना है , और राशन कार्ड में महेश भुंजिया का नाम भी अंकित नहीं है।
माता अघनी बाई ने बताया कि हमारे बच्चों को कोई शासन या प्रशासन से मदद मिलती तो वह शिक्षा और रोजगार से वंचित होने नहीं पड़ता। हमें एक बार प्रशासन से सिर्फ पांच हजार रुपए की सहायता मिला लेकिन इतने में जीवन यापन कर पाना बहुत ही मुश्किल है। स्वास्थ्य के बारे में बताया कि महेश की शरीर में अनेकों समस्या है, एक बार स्वास्थ्य विभाग से कोई अधिकारी कर्मचारी आए थे परंतु चर्चा कर वापस चले गए।
भुंजिया परिवार से मुलाकात करने पहुंचे जिला के इंडियन रेड क्रॉस संरक्षक सदस्य मनोज पटेल इनकी इस दशा को देखकर कहा कि अगर ऐसे परिवारों की प्रवाह समय रहते शासन-प्रशासन करे तो उन्हें अपनी सामान्य जीवन यापन करने में कोई परेशानी नहीं होगी। ऐसे विशेष पिछड़ी भुंजिया जनजातियों के लिए सरकार ने इनके उत्थान के लिए योजनाएं शिक्षा दीक्षा नौकरी के विशेष प्रयोजन तक किए लेकिन नतीजा बहुत सकारात्मक नहीं दिख रहा है। राज्यपाल की दत्तक संतान यह शब्द सुनकर वैभव पूर्ण जीवन शैली का एहसास होता है। मगर असल में यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण है। इंडियन रेड क्रॉस संरक्षक सदस्य समाजसेवी मनोज पटेल ने शासन प्रशासन से अपने दस उंगलियों से विनती कर कहा कि इस भुंजिया परिवार को जल्द से जल्द स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराएं।

छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा विशेष पिछड़ी जनजातियों के विकास के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही है लेकिन जरूरतमंद लोगों के पास सुविधा नहीं पहुंचना यह जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की वजह से नहीं पहुंचता। इस बच्चे और उसके परिवार के हालत को देखकर तो ऐसा लगता है कि सरकार की योजनाओं के लाभ वर्षों से वंचित है। इस परिवार के बच्चों को ना तो सही समय पर शिक्षा मिला ना ही रोजगार . अघनी बाई के तीनों बच्चे घर से दूर रहकर काम करने जाते हैं बताया।
देश में आजादी का अमृत महोत्सव तो काफी धूमधाम से मनाया जा रहा है, लेकिन आज भी देश में ऐसे लोग भी हैं जो अपने एक अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं एक लड़का जो न जाने कितने वर्षों से रस्सी में बंधे है तथा खुद की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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