Emotional Impact of Digital Devices: आज के डिजिटल दौर में मोबाइल, लैपटॉप और टीवी हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं. बच्चे हों या बड़े, घंटों स्क्रीन पर समय बिताना अब आम बात हो गई है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि ज्यादा स्क्रीन टाइम आपकी इमोशनल हेल्थ यानी भावनात्मक सेहत को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है? हाल ही में कई स्टडीज में यह बात सामने आई है कि स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से लोगों में तनाव, चिंता, चिड़चिड़ापन और अकेलापन जैसे लक्षण बढ़ रहे हैं.
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क्या कहती हैं स्टडीज?
लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ (2024) की रिपोर्ट के अनुसार, जो किशोर रोजाना 4 घंटे से ज्यादा स्क्रीन पर समय बिताते हैं, उनमें 15 प्रतिशत तक चिंता के लक्षण पाए गए. एम्स दिल्ली की स्टडी में यह पाया गया कि ज्यादा स्क्रीन यूज करने वाले बच्चों में ADHD जैसे लक्षण दिखने लगे हैं, जैसे ध्यान की कमी और एकाग्रता में गिरावट. यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि स्क्रीन की लत से किशोरों में इमोशनल कंट्रोल कमजोर हो रहा है.
स्क्रीन टाइम का इमोशनल असर कैसे होता है?
नींद पर असर: स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी मेलाटोनिन हार्मोन को प्रभावित करती है, जिससे नींद का चक्र बिगड़ता है. नींद की कमी से मूड खराब होता है और मानसिक थकावट बढ़ती है.
सामाजिक जुड़ाव में कमी: स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से आमने-सामने की बातचीत कम हो जाती है. इससे सामाजिक कौशल कमजोर होते हैं और अकेलापन महसूस होता है.
डोपामाइन की लत: तेज गति वाली डिजिटल सामग्री बार-बार देखने से दिमाग में डोपामाइन रिलीज़ होता है. धीरे-धीरे शरीर इसकी आदत बना लेता है और असली खुशी महसूस करना मुश्किल हो जाता है.
आत्म-सम्मान पर असर: सोशल मीडिया पर अवास्तविक तुलना और साइबरबुलिंग से किशोरों में नकारात्मक सोच और आत्म-संदेह बढ़ता है.
माता-पिता और युवाओं के लिए टिप्स
- स्क्रीन टाइम की सीमा तय करें और उसको फॉलो करें.
- सोने से कम से कम एक घंटे पहले स्क्रीन का इस्तेमाल बंद करें.
- बच्चों को बाहर खेलने, पढ़ने और परिवार के साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करें.
- सोशल मीडिया पर सकारात्मक कंटेंट देखें और तुलना से बचें.
- खुद भी स्क्रीन टाइम कम करें ताकि बच्चों को सही उदाहरण मिल सके.
स्क्रीन टाइम अगर सीमित और संतुलित न हो, तो यह हमारी भावनात्मक सेहत को धीरे-धीरे कमजोर कर सकता है. चिंता, तनाव और अकेलेपन से बचने के लिए जरूरी है कि हम डिजिटल दुनिया में रहते हुए भी मानव जुड़ाव और मानसिक संतुलन बनाए रखें.