दुनियाभर में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की मांग तेजी से बढ़ रही है, लेकिन चीन के हालिया फैसले ने इस ग्रोथ को झटका दे दिया है. चीन ने अब EV बैटरी निर्माण और लिथियम प्रोसेसिंग से जुड़ी अहम तकनीकों के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है. इससे भारत सहित कई देशों में EV का प्रोडक्शन धीमा हो सकता है.
चीन की नई चाल
- चीन के वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक, अब EV बैटरियों की कुछ Advanced manufacturing techniques तभी विदेश भेजी जा सकेंगी, जब सरकार से आधिकारिक लाइसेंस मिलेगा.
- इसका मतलब यह है कि कोई भी विदेशी कंपनी या साझेदार अब चीन से इन तकनीकों को सीधे नहीं ले पाएगा. यह नियम विशेष रूप से उन कंपनियों पर असर डालेगा, जो चीनी टेक्नोलॉजी पर निर्भर हैं.
पहले भी लगा चुका है चीन तकनीकी पाबंदियां
- चीन का टेक्नोलॉजी पर पाबंदी लगाना कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी वह रेयर अर्थ मटेरियल्स और मैग्नेट्स के एक्सपोर्ट पर रोक लगा चुका है, जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक गाड़ियों, इलेक्ट्रॉनिक्स और डिफेंस के सामान में होता है.
EV बैटरियों का सबसे बड़ा उत्पादक है चीन
- EV बैटरी बनाने के मामले में चीन पहले से ही सबसे आगे है. रिसर्च कंपनी SNE के अनुसार, दुनिया में बिकने वाली EV बैटरियों में से करीब 67% चीन की कंपनियां बनाती हैं. इनमें CATL, BYD और Gotion जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं. CATL टेस्ला को भी बैटरी देती है और इसके प्लांट्स जर्मनी, हंगरी और स्पेन में भी हैं. वहीं, BYD ने 2024 में टेस्ला को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे बड़ी EV कंपनी बन गई है.
चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी का विरोध: ED दफ्तर के बाहर कांग्रेसियों का हंगामा, पुलिस से हुई झूमाझटकी
किस तकनीक पर लगी है पाबंदी?
- इस बार चीन की नई पाबंदी Lithium Iron Phosphate (LFP) बैटरी की तकनीक पर है. ये बैटरियां सस्ती होती हैं, जल्दी चार्ज होती हैं और सुरक्षित भी मानी जाती हैं. 2023 के आंकड़ों के हिसाब से, LFP बैटरी बनाने में चीन की हिस्सेदारी 94% और लिथियम प्रोसेसिंग में 70% थी. इसका मतलब है कि इस सेक्टर पर चीन का लगभग पूरा कंट्रोल है, और वह इस कंट्रोल को बनाए रखना चाहता है.
- एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन के इस फैसले का सीधा असर अमेरिका, यूरोप और भारत जैसे देशों पर पड़ेगा. इससे EV बैटरियों की सप्लाई में कमी आ सकती है, जिससे गाड़ियां बनाना महंगा पड़ेगा और कंपनियों की ग्रोथ की प्लानिंग पर असर पड़ेगा. भारत जैसे देश, जो EV टेक्नोलॉजी के लिए चीन पर ज्यादा निर्भर हैं, वहां इस वजह से प्रोडक्शन में देरी और लागत बढ़ने की संभावना है.