भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन के वंशजो ने मनाई अपने पूर्वज की जयंती

भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन के वंशजो ने मनाई अपने पूर्वज की जयंती

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छुरा। प्रति वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी को पूरे देश में भगवान सहस्त्रबाहु की जयंती पूरे कल्चुरी समाज द्वारा मनाया जाता है । आज सर्व प्रथम भगवान की विधि विधान से धूप, दीप नैवेद्य अर्पित कर पूजन किया गया।इसी अवसर पर,पूर्व जिला संरक्षक सियाराम सिन्हा ने समाज को 5 हजार रूपए नगद भेंट किया। इस अवसर पर जिसमे छुरा परिक्षेत्र के मंडलेश्वर शिवलाल सिन्हाहा ,जिला सलाहकार चिंताराम सिन्हा,सचिव हेमंत सिन्हा,
शिक्षा प्रकोष्ठ संजीव सिन्हा, कोषाध्यक्ष हरि सिन्हा,यूवा मंच अध्यक्ष गुलशन सिन्हा,निर्वाचन अधिकारी मिथलेश सिन्हा,जिला युवा मंच कार्यकारिणी कुलेश्वर सिन्हा,जिला कार्यकारिणी मानसिंग सिन्हा,ग्राम प्रमुख हीरालाल सिन्हा, टेमन सिन्हा,निहाली सिन्हा,रोहित सिन्हा, प्रकाश सिन्हा,परनिया सिन्हा, एवम समाज के लोग मौजूद थे।

पौराणिक मान्यताएं

पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में सहस्त्रबाहु अर्जुन नाम के एक प्रतापी राजा हुए,जिन्हें कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से भी जाना जाता है,सहस्त्रबाहु अर्जुन को रावण से भी अधिक बलशाली माना जाता है, कार्तवीर्य अर्जुन के पिता का नाम कार्तवीर्य था ये भी प्रतापी राजा थे, उनकी कई रानियां भी लेकिन किसी को कोई संतान नहीं थी, राजा और उनकी रानियों ने पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली तब उनकी एक रानी ने देवी अनुसूया से इसका उपाय पूछा तब देवी अनुसूया में उन्हें अधिक मास में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उपवास रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए कहा विधि पूर्वक एकादशी का व्रत करने के कारण भगवान प्रसन्न हुआ और वर मांगने के लिए कहा तब राजा और रानी ने कहा कि प्रभु उन्हें ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न और सभी लोकों में आदरणीय तथा किसी से पराजित न हो भगवान ने राजा से कहा कि ऐसा ही होगा कुछ माह के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, इस पुत्र का नाम कार्तवीर्य अर्जुन रखा गया जो सहस्त्रबाहु के नाम से भी जाना गया।पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक राजा सहस्त्रबाहु ने संकल्प लेकर शिव तपस्या प्रारंभ कीं थी। इस घोर तप के समय में वो प्रति दिन अपनी एक भुजा काटकर भगवान शिव जी को अर्पण करते थे। इस तपस्या के फलस्वरूप भगवान निलकंठ ने सहस्त्रबाहु को अनेको दिव्य चमत्कारिक और शक्तिशाली वरदान दिए थे। हरिवंश पुराण के अनुसार महर्षि वैशम्पायन ने राजा भारत को उनके पूर्वजों का वंश वृत्त बताते हुए कहा कि राजा ययाति का एक अत्यंत तेजस्वी और बलशाली पुत्र हुआ था। “यदु“ के पांच पुत्र हुए जो 1-सहस्त्रदः, 2-पयोद, 3-क्रोस्टा, 4-नील और 5-अंजिक। इनमें से प्रथम पुत्र सहस्त्रद के परम धार्मिक 3 पुत्र हुये तथा वेनुहय नाम के हुए थे। महेश्वर नगर मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा के किनारे स्थित हैं। राजा सहस्त्रर्जुन या सहस्त्रबाहु जिन्होंने राजा रावण को पराजित कर उसका मान मर्दन कर दिया था। उन्होंने महेश्वर नगर की स्थापना कर इसे अपनी राजधानी शोषित किया था। यही प्राचीन नगर महेश्वर आज भी मध्यप्रदेश में शिव नगरी के नाम से भी जाना जाता हैं।

सहस्त्राबाहु के वंशज है कलार

कलवार जाती का सम्बन्ध हैहय वंश से जुड़ा है।हैहय वंशी क्षत्रिय थे,इसके पीछे इतिहास है,वेदों और हरिवंश पुराण में प्रमाण मिलता हैं ।की कलवार वंश का उत्पति भारत के महान चन्द्र वंशी क्षत्रिय कुल में हुआ हैं।इसी वंश में कार्तवीर्य,सहस्त्रबाहू जैसे वीर योद्धा हुए सहस्त्रबाहू के विषय में एक कथा यह भी प्रचलित है कि इन्ही से राजा यदु से यदुवंश प्रचलित है।जिसमे आगे चलकर भगवन श्री कृष्णा एवं बलराम ने जन्म लिया था।इसी चन्द्रवंशी की संतान कलवार हैं।बताते चले कि
कलार शब्द का शव्दिक अर्थ है मृत्यु का शत्रु या काल का भी काल अर्थात कलार वंशीयो को बाद में काल का काल की उपाधि दीं जाने लगी, जो शब्दिक रूप में बिगड़ते हुए काल का काल से कल्लाल हुई और फिर कलाल और अब कलार हो गई। ज्ञातव्य है की भगवान शिव के कालातंक या मृत्युजय स्वरूप को बाद में अपभ्रश रूप में कलाल कहा जाने लगा। भगवान शिव के इसी चालातंक स्वरूप का अपभ्रश शब्द ही है। कलवार, कलाल या कलार जैसे भगवान शंकर के नाम के पवित्र शब्द के शराब के व्यापारी के अर्थो या सामानार्थी शब्द के रूप में प्रयोग कलार समाज के शराब के व्यवसाय के कारण उपयोग किया जाने लगा जो की अनुचित है। भगवान सहस्त्रबाहु के वंशज पुरातन या मध्यकालीन युग में कलचुरी इस देश के कई स्थानों के शासक रहे हैं। उन्होंने बड़ी ही बुद्धिमत्ता व वीरता से न्याय प्रिय ढंग से शासन किया।

सहस्त्रबाहु ने जब रावण को बना लिया बंदी

एक कथा के अनुसार लंकापति रावण को जब सहस्त्रबाहु अर्जुन की वीरता के बारे में पता चला तो वह सहस्त्रबाहु अर्जुन को हराने के लिए उनके नगर आ पहुंचा. यहां पहुंचकर रावण ने नर्मदा नदी के किनारे भगवान शिव को प्रसन्न करने और वरदान मांगने के लिए तपस्या आरंभ कर दी. थोड़ी दूर पर सहस्त्रबाहु अर्जुन अपने पत्नियों के साथ नर्मदा नदी में स्नान करने के लिए आ गए, वे वहां जलक्रीड़ा करने लगे और अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया प्रवाह रोक देने से नदी का जल किनारों से बहने लगा, जिस कारण रावण की तपस्या में विघ्न पड़ गया. इससे रावण को क्रोध आ गया और उसने सहस्त्रबाहु अर्जुन युद्ध आरंभ कर दिया, नर्मदा तट पर रावण और सहस्त्रबाहु अर्जुन में भयंकर युद्ध हुआ। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को युद्ध में बुरी तरह से परास्त कर दिया और बंदी बना लिया,आखिर में सहस्त्रबाहु ने रावण को कैद कर लिया। रावण के दादा पुलस्त्य ऋषि सहस्त्रबाहु के पास आए और पोते को वापस मांगा। महाराज सहस्त्रबाहु ने ऋषि के सम्मान में उनकी बात मानते हुए रावण पर विजय पाने के बाद भी उसे मुक्त कर दिया और उससे दोस्ती कर ली। कहते है बंदी बनाने के बाद सहस्त्रबाहु ने रावण को महेश्वर किले में रखा। यह किला इंदौर शहर से करीब 100 किमी दूर है। यह नर्मदा नदी के तट पर बना हुआ है। महेश्वर के घाट पर हजारों छोटे-बड़े मंदिर हैंं। महेश्वर खूबसूरती के लिहाज से काफी लोकप्रिय है। यहां देश-विदेश से भी टूरिस्ट आते हैं। रानी देवी अहिल्या के शासनकाल से ही महेश्वर की साडिय़ां पूरे विश्व में आज भी प्रसिद्ध है। रामायण और महाभारत में महेश्वर को महिष्मती के नाम से संबोधित किया है। देवी अहिल्याबाई के समय बनाए सुंदर घाटों का प्रतिबिम्ब नदी में दिखता है।

संसार के कल्याण के लिए अनेकों गाथाएं

भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन की संसार के कल्याण के लिए अनेकों गाथाएं वर्णित हैं। ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन के व्याधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि कई नाम होने का वर्णन मिलता है। सहस्रार्जुन जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा एवं सामाजिक उत्थान के लिए मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार प्रतिवर्ष सहस्त्रबाहु जयंती कार्तिक शुक्ल सप्तमी को दीपावली के ठीक बाद मनाई जाती है। भगवान सहस्त्रबाहु को वैसे तो सम्पूर्ण सनातनी हिन्दू समाज अपना आराध्य और पूज्य मानकर इनकी जयंती पर इनका पूजन अर्चन करता हैं किन्तु ये कलार समाज इस दिन को विशेष रूप से उत्सव-पर्व के रूप में मनाकर भगवान सहस्त्रबाहु की आराधना करता हैं। उनका जन्म नाम एकवीर तथा सहस्रार्जुन भी है। वो भगवान दत्तात्रेय के भक्त थे और दत्तात्रेय की उपासना करने पर उन्हें सहस्र भुजाओं का वरदान मिला था। इसलिए उन्हें सहस्त्रबाहु अर्जुन के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत, वेद ग्रंथों तथा कई पुराणों में सहस्त्रबाहु की कई कथाएं पाई जाती हैं।

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