
Gariaband News: गरियाबंद जिला छत्तीसगढ़ का एक प्राकृतिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है, जहाँ गोंड, कमार, और भुजिया जैसी जनजातियाँ निवास करती हैं। ये समुदाय पीढ़ियों से वनों पर निर्भर रहते हुए पारंपरिक औषधीय ज्ञान को संजोए हुए हैं। दुर्भाग्यवश, आधुनिक विकास की दौड़ में यह अमूल्य ज्ञान नष्ट होने की कगार पर है। ऐसे में गरियाबंद जिले में एक वनौषधि अनुसंधान केंद्र की स्थापना जनजातीय समाज की एक सशक्त, तार्किक और न्यायोचित मांग बन चुकी है।
गरियाबंद का भौगोलिक क्षेत्रफल घने वनों से आच्छादित है, जहाँ गिलोय, आँवला, हर्रा, बेहड़ा, सतावर, कोनच, अश्वगंधा, वज्रदंती, कालमेघ जैसी सैकड़ों औषधीय वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। इन वनस्पतियों का परंपरागत चिकित्सकीय उपयोग हमारे आदिवासी समाज की पहचान है। यदि इन वनौषधियों का वैज्ञानिक अध्ययन और प्रसंस्करण केंद्र यहीं स्थापित किया जाए, तो न केवल जनजातीय ज्ञान का संरक्षण होगा, बल्कि स्थानीय रोजगार और आर्थिक सशक्तिकरण का मार्ग भी खुलेगा।
आज आवश्यकता है कि राज्य और केंद्र सरकार इस मांग को गंभीरता से लेते हुए गरियाबंद में एक समर्पित वनौषधि अनुसंधान संस्थान की स्थापना करे, जिसमें पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण हो औषधीय पौधों की पहचान,संवर्धन वैज्ञानिक परीक्षण हो
स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण और रोजगार मिले औषधीय उत्पादों का प्रसंस्करण और विपणन किया जाए
जनहित, जनस्वास्थ्य और जनजातीय उत्थान के लिए यह कदम अत्यंत आवश्यक है। यदि इस दिशा में शीघ्र पहल नहीं की गई, तो न केवल यह बहुमूल्य ज्ञान समाप्त होगा, बल्कि संभावित रोजगार और स्वास्थ्य समाधान का एक बड़ा अवसर भी चूक जाएगा।